Neeraj
स्वप्न झरे फूल से , मीत चुभे शूल से , लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से , और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे , कारवाँ गुज़र गया , ग़ुबार देखते रहे । नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई , पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई , पात पात झर गये कि शाख़ शाख़ जल गई , चाह तो निकल सकी न , पर उमर निकल गई , पर उमर निकल गई , गीत अश्क बन गए , स्वप्न हो दफन गए , साथ के सभी दिऐ धुआँ पहन पहन गये , और हम झुके झुके , मोड़ पर रुके रुके , उम्र ...