Neeraj

 स्वप्न झरे फूल से,

मीत चुभे शूल से,

लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,

और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे

कारवाँ गुज़र गयाग़ुबार देखते रहे  


नींद भी खुली  थी कि हाय धूप ढल गई,

पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,

पात पात झर गये कि शाख़ शाख़ जल गई,

चाह तो निकल सकी पर उमर निकल गई

पर उमर निकल गई,


गीत अश्क बन गए

स्वप्न हो दफन गए,

साथ के सभी दिऐ धुआँ पहन पहन गये,

और हम झुके झुके,

मोड़ पर रुके रुके,

उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।


क्या शबाब था कि फूल फूल प्यार कर उठा,

क्या कमाल था कि देख आइना सिहर उठा,

इस तरफ ज़मीन और आसमाँ उधर उठा,

थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,

एक दिन मगर यहाँ,

ऐसी कुछ हवा चली,

लुट गयी कली कलीकि घुट गयी गली गली,

और हम लुटे लुटे,

वक्त से पिटे पिटे,

साज़ की शराब का ख़ुमार देखते रहे,

कारवाँ गुज़र गयाग़ुबार देखते रहे।


हाथ थे मिले कि ज़ुल्फ़ चाँद की सँवार दूँ

होंठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,

दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,

और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ

भूमी पर उतार दूँ,


हो सका  कुछ मगर,

शाम बन गई सहर

वो उठी लहर कि ढह गये किले बिखर बिखर,

और हम डरे डरे,

नीर नयन में भरे,

ओढ़कर कफ़न पड़ेमज़ार देखते रहे।


माँग भर चली कि एकजब नई नई किरन,

ढोलकें धुनक उठींठुमक उठे चरन चरन,

शोर मच गया कि लो चली दुल्हनचली दुल्हन,

गाँव सब उमड़ पड़ाबहक उठे नयन नयन,

बहक उठे नयन नयन,


पर तभी ज़हर भरी,

गाज एक वह गिरी,

पुँछ गया सिंदूर तार तार हुई चूनरी,

और हम अजान से,

दूर के मकान से,

पालकी लिये हुए कहार देखते रहे। 

कारवाँ गुज़र गयाग़ुबार देखते रहे  



स्वप्न झरे फूल से,

मीत चुभे शूल से,

लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,

और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे

कारवाँ गुज़र गयाग़ुबार देखते रहे,

कारवाँ गुज़र गयाग़ुबार देखते रहे 


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